Sunday, February 25, 2007

यात्रा

मैं मेघ हूं ।
धरती और नारायन के बीच मे ,
बसा मेरा विशाल अस्तित्व है ।
चिन्ता रहित घूमना ,
जब मन भारी हो तो बरस जाना ,
यही मेरा, एक मात्र, दाईत्व है ।

धरती पे जीवन बसा के ,
नारायन सुर्य,चन्द्र और मुझे कह गये ।
मानव अपना कर्म करेंगे ,
और तुम अपना करना ,
जीवन की रक्शा करना ।
तो बस तब से मै भटक रहा हूं ,
मानव रचना समझ रहा हूं ।

भटक तो मानव भी गया है ,
पर वो उसका कर्म नही है ।
उसका कर्म,
एक अद्भुत शिलान्यास है ,
निरन्तर जीने का प्रयास है ।

मेरा कर्म उसे दिशा देना नहीं है ,
मैं तो स्वयम दिशाहीन हूं ।
मेरा कर्म उसे सिर्फ जगाना है ,
उडना ,रुकना और चलते जाना है ।
मैं अपनी कर्मठता से विवश हूं ,
इस लिये कही रुक नही पाऊंगा ।
बस कविता समान बह कर ,
हर दिन कथन कह्ता जाऊंगा।

1 comment:

gamathepsicop said...

ज़िन्दगी का सफ़र ही ऐसा है...:)