Wednesday, June 4, 2014

कोई कहता है कहानी
कोई कहे कविता
कहीं न कहीं हर कोई
है एक सपने में जीता
किसी को दिखे  मीठा
जलेबी और पकवान
किसी को लगे
कर्म करने का भ्रम महान
किसी को श्रम के कांटें
लगे फूलोँ के समान


Saturday, April 21, 2007

चेतना

हम सब सचेत है
सब जीवन के पालो को जीं रहे है
पर कितने ही उन्हें समझ रहे है
पर कितने ही उन्हें