Thursday, March 8, 2007

यात्रा - फिर से

मेरी सीमा ये है की
मैं कल को नही जानता ,
क्या सही और क्या गलत
मै ये भी नही पहचानता ,
इसलिये मधुलिका को मैने
चाह कर भी कुछ ना कहा
बस वही पडा छोड उसे
आगे बढ चला ।
कुछ दिन फिर यूं ही चलूंगा
और फिर कोई कहानी मिल जाएगी
हमे नही पता की
कब कही दूर कोई और कहानी
मधुलिका से जुड जाएगी ।

2 comments:

उन्मुक्त said...

जितनी सुन्दर आपकी कवितायें हैं उतना ही सुन्दर आपका चिट्ठा। यहां आ कर अच्छा लगा।

gamathepsicop said...

सुन्दर :)